Thursday, December 13, 2007

एक कविता

आदत पड़ चुकी है
तेरे विचारों
और उद्घोषणाओं का बोझ लादने की
मेरी सोच पर है
तेरा नियंत्रण
मेरे निर्णय
मेरे अपने नहीँ
संचालित हो रहा है
मेरा सब कुछ
मेरे प्रतिनिधि के द्वारा
बेहत्तर की कल्पना के लिए
तेरे हाथों में सोंपा था
बच्चों का भविष्य
बूढ़ी माँ को
जीवन के सुखद-आरामदेह
अंतिम क्षण देने की शपथ
सब कुछ ...
अब आती है तरस
खुद पर
और दोषी करार करता हूँ
स्वयं को
कुछ था
जो उस वक्त
समझ नहीं पाया था ...

तू ठहरा
आकाश का प्राणी
और तेरे आशीष
उपर से निकलकर
उधर ही
तुम्हारे इर्द-गिर्द
सुरक्षा-घेरों द्वारा
सोक लिए जाते हैं

और पृथवी पर हम
आशा बाँधे बैठे हैं
कि कब हमारी ज़मीन पर
तेरे कदम न सही
तेरी कृपा की
एक बूँद टपक पड़े।

विनय
22/09/07

9 comments:

जितेन्द़ भगत said...

kuchh aur poems bhi post karein!
Jitendra Bhagat
Delhi University

जितेन्द़ भगत said...

PLZ send meaning of this word-
उद्घोषणाओं
Dr. jitendra bhagat
jitjiten@gmail.com

अर्चना तिवारी said...

vinay ji aap mauritius men bhi hindi prem banae hue hain badi achhi baat hai....

Patali-The-Village said...

बहुत बेहतरीन| धन्यवाद|

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ..

रविकर said...

बुधवारीय चर्चा मंच पर है
आप की उत्कृष्ट प्रस्तुति ।

charchamanch.blogspot.com

vandana gupta said...

्विचारणीय

कविता रावत said...

अब आती है तरस
खुद पर
और दोषी करार करता हूँ
स्वयं को
कुछ था
जो उस वक्त
समझ नहीं पाया था ...
..sach bahut kuch samjh bahut der baad hi aa paati hai..
bahut badiya saarthak chintan karati prastuti

pushpendra dwivedi said...

वाह अतिसुन्दर रचनात्मक कृति